मर्डर मिस्ट्री फिल्म 'रौतू का राज'
मर्डर मिस्ट्री फिल्में हमेशा से दर्शकों की पसंदीदा रही हैं। खासकर ओटीटी के दर्शकों का एक वर्ग इस तरह की फिल्मों को बेहद पसंद करता है। लेकिन आमतौर पर ऐसी फिल्मों में घटनाक्रम काफी तेजी से बदलते हैं। इस हफ्ते ओटीटी पर रिलीज हुई नवाजुद्दीन सिद्दीकी की फिल्म 'रौतू का राज' एक ऐसी थ्रिलर है जिसमें मर्डर मिस्ट्री धीरे-धीरे सुलझती है। इसकी मजेदार कहानी के चलते यह आपको पसंद आती है।
'रौतू का राज' की कहानी
फिल्म उत्तराखंड के मशहूर हिल स्टेशन मसूरी के एक गांव रौतू की बेली की कहानी है। यहां के लोगों की जिंदगी में किसी तरह की आपाधापी नहीं है। यहां के लोग अपराध से कम वास्ता रखते हैं, इसलिए पुलिसवालों के पास कम ही काम होता है। इस गांव में दिव्यांग बच्चों का एक स्कूल सेवाधाम है। लेकिन एक दिन अचानक उस इलाके के इंस्पेक्टर दीपक सिंह नेगी (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) को खबर मिलती है कि सेवाधाम स्कूल की वार्डन संगीता (नारायणी शास्त्री) की हत्या हो गई है। वह अपने साथी सब इंस्पेक्टर नरेश प्रभाकर डिमरी (राजेश कुमार) के साथ मिलकर मामले की तफ्तीश शुरू करता है। हत्या के मामलों की जांच का अनुभव नहीं होने के कारण इंस्पेक्टर दीपक और उसके साथियों को तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसी बीच शक की सूई स्कूल के मैनेजर मनोज केसरी (अतुल तिवारी) की ओर घूमती है। वहीं स्कूल के प्रिंसिपल और कुछ अन्य लोग भी शक के घेरे में आते हैं। साथ ही पता चलता है कि स्कूल की बेशकीमती जमीन पर कुछ माफिया भी नजर जमाए हुए हैं। क्या इंस्पेक्टर दीपक नेगी रौतू में हुई इस हत्या के राज को सुलझा पाते हैं? यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
'रौतू का राज' का सेकंड हाफ
फिल्म के डायरेक्टर आनंद सुरापुर ने एक दिलचस्प कहानी को मजेदार अंदाज में पर्दे पर उतारा है। यह फिल्म दो घंटे से भी कम लंबाई की है और सीधे मुद्दे पर आ जाती है। मर्डर मिस्ट्री की जांच धीरे-धीरे आगे बढ़ती है। गांव के सुरम्य वातावरण में सीधे-सादे लोगों के बीच कॉमेडी के दृश्य लुभाते हैं और थ्रिलर मिस्ट्री भी बांधे रखती है। इंटरवल से पहले धीरे-धीरे मगर मजेदार अंदाज में बढ़ती फिल्म आपका मनोरंजन करती है। सेकंड हाफ में कहानी और भी दिलचस्प हो जाती है। फिल्म का क्लाइमेक्स हैरान कर देने वाला है।